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किसके प्रधानमंत्री हैं मनमोहन ?

jugaali
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पति -पत्नी के संबंधों को लेकर एक मशहूर चुटकुला है कि एक युगल में शादी के दस साल बाद भी कभी झगडा नहीं हुआ तो उनके मित्रों ने पति से इस सफलता का राज पूछा तो पति ने कहा कि यह हमारे बीच की समझ है.दरअसल मैं घर से बाहर की जिम्मेदारिया देखता होऊँ और मेरी पत्नी घर के अंदर की मसलन क्या बनेगा,बच्चे कहाँ पढेंगे,मेहमानों को क्या देना है तथा घर के अन्य काम जबकि मैं बाहर के मामले जैसे कि पाकिस्तान से कैसे सम्बन्ध रखने हैं ,अमेरिका की यात्रा सरकार को कब करनी चाहिए और इराक-ईरान पर हमारी विदेश नीति क्या होगी इत्यादि. यह चुटकुला हमारी सरकार पर सटीक बैठता है.मौजूदा यूपीए सरकार ने छः साल पूरे कर लिए हैं लेकिन इन छः सालों के दौरान सरकार के काम-काज का हिसाब-किताब किया जाए तो यह समझना मुश्किल हो जाता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आखिर हैं किसके नेता?उपरोक्त चुटकुले की तरह विदेशी मामलों के या फिर देश की आम जनता के?
आपने इतने लम्बे कार्यकाल में उन्होंने ऐसी कोई भी कोशिश नहीं की जिससे ये लगे कि वे आम लोगो के प्रधानमंत्री हैं.सालभर में वे दो बार तो अमेरिका के चक्कर लगा चुके हैं .ऐसा लगता है मनो उन्हें अपने हर फैसले पर अमेरिकी सरकार की मुहर लगवानी होती है?देश की किसी समस्या को सुलझने में न तो उनकी दिलचस्पी दिख रही है और न ही कोई रूचि.मंत्रिओं पर उनकी कोई पकड़ नहीं है,बेलगाम मंहगाई उनकी समझ से बाहर है, यहाँ तक की सरकारी पदों पर नियुक्ति में भी उनकी नहीं चलती.नक्सलवाद हो या आतंकवाद,प्रधानमंत्री ऐसे बात करते हैं मानो किसी और देश की समस्याएं हो.दरअसल सरकार में अपनी हालत का एहसास कर मनमोहन ने देश की बजाय विदेश की ज़िम्मेदारिया ले ली हैं और देश का काम गाँधी परिवार अर्थात सोनिया-राहुल की जोड़ी को सौंप दिया है.यही कारण है कि देश कि हर छोटी-बड़ी समस्या पर या तो सोनिया बोलती हैं या राहुल.महंगाई पर भी सोनिया के पत्र के बाद ही सरकार की नींद टूटी .यही हाल हर मामले में नज़र आता है.खास बात यह है की सरकार के युवराज राहुल भी फूंक-फूंककर कदम रख रहे हैं.वे अपने आपको जननेता के तौर पर पेश करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.इसमें कुछ गलत भी नहीं है पर असलियत भी यह नहीं है? आप खुद देखिये जननेता राहुल आजतक किसी भी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नहीं गए?वे मणिपुर और नागालैंड भी नहीं गए? पर उत्तरप्रदेश हर माह जाते हैं,वे मुंबई भी चले जाते हैं और विदर्भ जाकर कलावती के आंसू तक पोंछ आते हैं क्यूंकि वे जानते हैं की प्रचार कहाँ मिलेगा? कुछ यही हाल सोनिया गाँधी का है उन्होंने भी अपने आपको ऐसे रहस्यमय घेरे मे बांध रखा है कि आम कांग्रेसी और जनता के लिए वे देवी से काम नहीं हैं.इस बात को सरकार के मंत्री भी जानते हैं और संत्री भी?इसलिए कोई मनमोहन की नहीं सुनता और मनमोहन भी ये समझने लगे हैं इसलिए वे भी देश की बजाय विदेश में ज्यादा रूचि ले रहे हैं. कुल मिलकर जनता अनाथ है और सरकार अपने आप में मशगूल …..तो फिर देश का भगवान्(यदि है तो) ही मालिक है….?

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