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मंगलौर हादसे ने खोली नेशनल न्यूज़ चैनलों की पोल

jugaali
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राखी सावंत और मल्लिका शेरावत के चुम्बन और अधनंगेपन के सहारे टीआरपी की जंग में अपने आपको नम्बर वन बताने में उलझे कथित नेशनल न्यूज़ चैनलों की पोल शनिवार को मंगलौर विमान दुर्घटना(Mangalore air crash) ने खोलकर रख दी.सुबह ६ बजे हुई इस दुर्घटना तक हमारे नेशनल चैनलों के बाईट-वीर लगभग १० बजे तक पहुँच पाए और इस दौरान वे स्थानीय न्यूज़ चैनलों की ख़बरों और फुटेज को चुराकर “एक्सक्लूसिव” बताकर चलाते रहे. वो तो भला हो टीवी-९, इंडियाविजन और स्वर्ण न्यूज़ का जिनकी बदौलत देशभर को इस घटना की पल-पल की जानकारी मिल पायी.इसके लिए ये चैनल वाकई बधाई के पात्र हैं. कुछ दिन पहले सीआरपीएफ के दल पर हुए नक्सली हमले के दौरान भी कथित नेशनल न्यूज़ चैनलों की असलियत सामने आ गयी थी जब उन्हें इस घटना की जानकारी के लिए स्थानीय साधना न्यूज़ चैनल पर निर्भर रहना पड़ा था.सोचने वाली बात यह है की जब मंगलौर जैसे बड़े और वेल-कनेक्टेड शहर तक पहुँचने में इन चैनलों को चार घंटे लग गए तो किसी दूर-दराज़ की जगह पर कोई बड़ा हादसा हो गया तो ये क्या करेंगे? या इसी तरह नेताओं के बयानों पर दिन भर खेलकर अपनी पीठ थपथपाते रहेंगे?
विमान हादसे में हमारे चैनल ‘चोरी और सीना जोरी’ को चरितार्थ कर रहे थे. उनका पूरा प्रयास था कि स्थानीय चैनलों के नाम न दिखाने पड़े इसलिए उन्होंने स्क्रोल की साइज़ तक बढ़ा दी लेकिन स्थानीय चैनल ज्यादा तेज निकले और वे अपना नाम स्क्रीन के बीचो-बीच चलाने लगे. हद तो तब हो गई जब टाइम्स नॉऊ जैसा अंग्रेज़ी चैनल भी हिंदी के चैनलों की तरह छिछोरेपन पर उतर आया.इससे तो बीबीसी इंडिया बेहतर रहा जिसने फुटेज न होने पर इंडिया गेट दिखाकर काम चला लिया.वैसे इसे भारत ही नही दुनिया भर में सबसे तेज माना जाता है. अब सुनिए नामी न्यूज़ प्रस्तोताओं की दिमागी समझ का आँखों देखा हाल: आजतक पर नवजोत की रूचि इस भयावह दुर्घटना में सबसे ज्यादा इस बात को लेकर थी कि लैंडिंग के पहले सीट बेल्ट बाँधने के लिए अनाउंस हुआ था कि नहीं और उसने यह सवाल कई बार पूछा. एनडीटीवी अपने ग्राफ में विमान को उतरने के साथ ही दुर्घटना ग्रस्त होना बताता रहा तो इंडिया टीवी ने हवाई अड्डे की टेबल टॉप स्थिति को समझाने के लिए स्टूडियो में टेबल ही रख दिया तो स्टार न्यूज़ जैसे चैनल कई देशों में प्रतिबंधित गूगल-अर्थ का सहारा लेते रहे. घटना के चार घंटे बाद भी अधिकतर चैनल यह पता नहीं लगा पाए थे कि कुल कितने लोग मारे गए हैं. यह बात अलग है की ‘सांप मरने के बाद लकीर पीटने’ की तर्ज़ पर हमारे बड़े चैनल दिन भर अपने सबसे आगे रहने, घटना की तह तक जाने और विशेषज्ञता पूर्ण ज्ञान को बघारने में पीछे नहीं रहे लेकिन जब उनकी तेज़ी और कौशल की सबसे ज्यादा ज़रूरत थी तब वे छोटे-स्थानीय चैनलों की मेहनत की कमाई को मुफ्त में अपनी बताकर खाते रहे.
क्षेपक: हमारा राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन हमेशा की तरह इस खबर के पूरीतरह पुष्ट होने का इंतज़ार करता रहा और सबसे आखिर में इस समाचार को अपने दर्शकों तक पहुँचाया.

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